09-03-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

परिवर्तन को अविनाशी बनाओ

शक्तिशाली स्थिति में स्थित करने वाले सर्वशक्तिवान शिवबाबा बोले:-

‘‘बापदादा सभी चात्रक बच्चों को देख रहे हैं। सभी को सुनना, मिलना और बनना यही लगन है। सुनना, इसमें नम्बरवन चात्रक हैं। मिलना इसमें नम्बर हैं और बनना - इसमें यथा शक्ति तथा समान बनना। लेकिन सभी श्रेष्ठ आत्मायें, ब्राह्मण आत्मायें तीनों के चात्रक जरूर हैं। नम्बरवन चात्रक मास्टर मुरलीधर, मास्टर सर्वशक्तिवान बाप समान सदा और सहज बन जाते हैं। सुनना अर्थात्, मुरलीधर बनना। मिलना अर्थात् संग के रंग में उसी समान शक्तियों और गुणों में रंग जाना। बनना अर्थात् संकल्प के कदम पर, बोल के कदम पर, कर्म के कदम पर कदम रखते हुए साक्षात बाप समान बनना। बच्चे के संकल्प में बाप का संकल्प समान अनुभव हो। बोल में, कर्म में जैसा बाप वैसा बच्चा, सर्व को अनुभव हो। इसको कहा जाता है समान बनना वा नम्बरवन चात्रक। तीनों में से चेक करो मैं कौन हूँ? सभी बच्चों के उमंग उत्साह भरे संकल्प बापदादा के पास पहुँचते हैं। संकल्प बहुत अच्छे हिम्मत और दृढ़ता से करते हैं। संकल्प रूपी बीज शक्तिशाली है लेकिन धारणा की धरनी, ज्ञान का गंगाजल और याद की धूप कहो वा गर्मी कहो, बार-बार स्व अटेन्शन की रेख देख, इसमें कहाँ-कहाँ अलबेले बन जाते हैं। एक भी बात में कमी होने से संकल्प रूपी बीज सदा फल नहीं देता है। थोड़े समय के लिए एक सीजन, दो सीजन फल देगा। सदा का फल नहीं देगा। फिर सोचते हैं - बीज तो शक्तिशाली था, प्रतिज्ञा तो पक्की की थी। स्पष्ट भी हो गया था। फिर पता नहीं क्या हो गया। 6 मास तो बहुत उमंग रहा फिर चलते-चलते पता नहीं क्या हुआ! इसके लिए जो पहले बातें सुनाई उस पर सदा अटेन्शन रहे।

दूसरी बात - छोटी-सी बात में घबराते जल्दी हो। घबराने के कारण छोटीसी बात को भी बड़ा बना देते हो। होती चींटी है उसको बना देते हो हाथी। इसलिए बैलेन्स नहीं रहता। बैलेन्स न होने के कारण जीवन से भारी हो जाते हो। या तो नशे में बिल्कुल ऊँचे चढ़ जाते वा छोटी-सी कंकड़ी भी नीचे बिठा देती। नॉलेजफुल बन सेकण्ड में उसको हटाने के बजाए कंकड़ी आ गई, रूक गये, नीचे आ गये, यह हो गया, इसको सोचने लग जाते हो। बीमार हो गया, बुखार वा दर्द आ गया। अगर यही सोचते और कहते रहें तो क्या हाल होगा! ऐसे जो छोटी-छोटी बातें आती हैं उनको मिटाओ, हटाओ और उड़ो। हो गया, आ गया इसी संकल्प में कमज़ोर नहीं बनो। दवाई लो और तन्दरूस्त बनो। कभी-कभी बापदादा बच्चों के चेहरे को देख सोचते हैं - अभी-अभी क्या थे, अभी-अभी क्या हो गये! यह वही ही हैं या दूसरे बन गये! जल्दी में नीचे ऊपर होने से क्या होता? माथा भारी हो जाता। वैसे भी स्थूल में अभी ऊपर, अभी नीचे आओ तो चक्र महसूस करेंगे ना। तो यह संस्कार परिवर्तन करो। ऐसे नहीं सोचो की हम लोगों की आदत ही ऐसी है। देश के कारण वा वायुमण्डल के कारण वा जन्म के संस्कार, नेचर के कारण ऐसा होता ही है, ऐसी-एसी मान्यतायें कमज़ोर बना देती हैं। जन्म बदला तो संस्कार भी बदलो। जब विश्व-परिवर्तक हो तो स्वपरिवर्त क तो पहले ही हो ना। अपने आदि अनादि स्वभाव-संस्कार को जानो। असली संस्कार वह हैं। यह तो नकली हैं। मेरे संस्कार, मेरी नेचर यह माया के वशीभूत होने की नेचर है। आप श्रेष्ठ आत्माओं की आदि अनादि नेचर नहीं है। इसलिए इन बातों पर फिर से अटेन्शन दिला रहे हैं। रिवाइज करा रहे हैं। इस परिवर्तन को अविनाशी बनाओ।

विशेषतायें भी बहुत हैं। स्नेह में नम्बरवन हो, सेवा के उमंग में नम्बरवन हो। स्थूल में दूर होते भी समीप हो। कैचिंग पावर भी बहुत अच्छी है। महसूसता की शक्ति भी बहुत तीव्र है। खुशियों के झूलें में भी झूलते हो। वाह बाबा, वाह परिवार, वाह ड्रामा के गीत भी अच्छे गाते हो। दृढ़ता की विशेषता भी अच्छी है। पहचानने की बुद्धि भी तीव्र है। बाप और परिवार के सिकीलधे लाडले भी बहुत हो। मधुबन के शृंगार हो और रौनक भी अच्छी हो। वैरायटी डालियां मिलकर एक चन्दन का वृक्ष बनने का एग्जैम्पल भी बहुत अच्छे हो। कितनी विशेषतायें हैं! विशेषतायें ज्यादा हैं और कमज़ोरी एक है। तो एक को मिटाना तो बहुत सहज है ना। समस्यायें समाप्त हो गई हैं ना! समझा-

जैसे सफाई से सुनाते हो वैसे दिल से सफाई से निकालने में भी नम्बरवन हो। विशेषताओं की माला बनायेंगे तो लम्बी चौड़ी हो जायेगी। फिर भी बापदादा मुबारक देते हैं। यह परिवर्तन 99 प्रतिशत तो कर लिया बाकी 1 प्रतिशत है। वह भी परिवर्तन हुआ ही पड़ा है। समझा। कितने अच्छे हैं जो अभी-अभी भी बदल करके ना से हाँ कर देते हैं। यह भी विशेषता हैं ना! उत्तर बहुत अच्छा देते हैं। इन्हों से पूछते हैं शक्तिशाली, विजयी हो? तो कहते हैं अभी से हैं! यह भी परिवर्तन की शक्ति तीव्र हुई ना। सिर्फ चींटी चूहे से घबराने का संस्कार है। महावीर बन चींटी को पांव के नीचे कर दो और चूहे की सवारी बना दो, गणेश बन जाओ। अभी से विघ्न विनाशक अर्थात् गणेश बनकर चूहे पर सवारी करने लग जाना। चूहे से डरना नहीं। चूहा शक्तियों को काट लेता है। सहनशक्ति खत्म कर लेता है। सरलता खत्म कर देता है। स्नेह खत्म कर देता। काटता है ना। और चींटी सीधे माथे में चली जाती है। टेन्शन में बेहोश कर देती है। उस समय परेशान कर लेती है ना। अच्छा!

सदा महावीर बन शक्तिशाली स्थिति में स्थित होने वाले, हर संकल्प, बोल और कर्म, हर कदम पर कदम रख बाप के साथ-साथ चलने वाले, सच्चे जीवन के साथी, सदा अपनी विशेषताओं को सामने रख कमज़ोरी को सदा के लिए विदाई देने वाले, संकल्प रूपी बीज को सदा फलदायक बनाने वाले, हर समय बेहद का प्रत्यक्षफल खाने वाले, सर्व प्राप्तियों के झूलों में झूलने वाले ऐसे सदा के समर्थ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

फ्रांस ग्रुप से

1. सभी बहुत बार मिले हो और अब फिर से मिल रहे हो - क्योंकि जब कल्प पहले मिले थे तब अब मिल रहे हो। कल्प पहले वाली आत्मायें फिर से अपना हक लेने के लिए पहुँच गई हैं? नया नहीं लगता है ना! पहचान याद आ रही है कि हम बहुत बारी मिले हैं! पहचाना हुआ घर लग रहा है। जब अपना कोई मिल जाता है तो अपने को देखकर खुशी होती है। अभी समझते हो कि वह जो सम्बन्ध था वह स्वार्थ का सम्बन्ध था, असली नहीं था। अपने परिवार में, अपने स्वीट होम में पहुँच गये। बापदादा भी भले पधारे कहकर स्वागत कर रहे हैं।

दृढ़ता सफलता को लाती है, जहाँ यह संकल्प होता है कि यह होगा या नहीं होगा वहां सफलता नहीं होती। जहाँ दृढ़ता है वहाँ सफलता हुई पड़ी है। कभी भी सेवा में दिलशिकस्त नहीं होना क्योंकि अविनाशी बाप का अविनाशी कार्य है। सफलता भी अविनाशी होनी ही है। सेवा का फल न निकले यह हो नहीं सकता। कोई उसी समय निकलता है कोई थोड़ा समय के बाद इसलिए कभी भी यह संकल्प भी नहीं करना। सदा ऐसे समझो कि सेवा होनी ही है।

जापान ग्रुप से:- बाप द्वारा सर्व खज़ाने प्राप्त हो रहे हैं? भरपूर आत्मायें हैं, ऐसा अनुभव करते हो? एक जन्म नहीं लेकिन 21 जन्म यह खज़ाने चलते रहेंगे। कितना भी आज की दुनिया में कोई धनवान हो लेकिन जो खज़ाना आपके पास है वह किसी के पास भी नहीं है। तो वास्तविक सच्चे वी.आई.पी कौन हैं? आप हो ना! वह पोजीशन तो आज है कल नहीं लेकिन आपका यह ईश्वरीय पोजीशन कोई छीन नहीं सकता। बाप के घर के शृंगार बच्चे हो। जैसे फूलों से घर को सजाया जाता है ऐसे बाप के घर के शृंगार हो। तो सदा स्वयं को - मैं बाप का शृंगार हूँ ऐसा समझ श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहो। कभी भी कमज़ोरी की बातें याद नहीं करना। बीती बातों को याद करने से और ही कमज़ोरी आ जायेगी। पास्ट सोचेंगे तो रोना आयेगा इसलिए पास्ट अर्थात् फिनिश। बाप की याद शक्तिशाली आत्मा बना देती है। शक्तिशाली आत्मा के लिए मेहनत भी मुहब्बत में बदल जाती है। जितना ज्ञान का खज़ाना दूसरों को देते हैं उतना वृद्धि होती है। हिम्मत और उल्लास द्वारा सदा उन्नति को पाते आगे बढ़ते चलो। अच्छा-